
आम का मौसम आ गया है। बाजारों में तरह-तरह की आम की किस्में बिकने के लिए आने लगी हैं। उन्हीं में से एक बेहद पसंद की जाने वाली किस्म है — "लंगड़ा आम"। इसकी खासियत सिर्फ इसका स्वाद नहीं, बल्कि इसके पीछे छुपी एक दिलचस्प कहानी है, जिसकी हम आज चर्चा करने जा रहे हैं।
खासियत की बात करें तो, लंगड़ा आम को उसकी मखमली बनावट, तेज सुगंध और रसीले गूदे के लिए जाना जाता है। न इसमें फाइबर (रेशे) का झंझट होता है, न ही इसमें बड़ा बीज होता है। बस एक बार खाओ और स्वाद ज़बान पर ऐसा चढ़ता है कि कभी न उतरे।
क्या है इतिहास?

ऐसा माना जाता है कि इस आम की प्रजाति की उत्पत्ति लगभग 300 साल पहले बनारस (वाराणसी) में हुई थी। इसे सबसे पहले वहीं के एक पुजारी ने उगाया था।
कहानी के मुताबिक, पुजारी बनारस के एक प्राचीन शिव मंदिर में रहते थे। एक पैर से चल-फिर नहीं पाते थे, शायद इसी कारण वे 'लंगड़े पुजारी' के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे
पुजारी ने अपने आश्रम में एक आम का पौधा लगाया था। वे उसे रोज़ पानी देते, देखरेख करते, और जब आसपास के बच्चे पत्थरों से आम तोड़ने की कोशिश करते, तो डंडा लेकर उन्हें भगाने की कोशिश करते। धीरे-धीरे यह बात इलाके में फैल गई और उस आम के पेड़ को ‘लंगड़े वाला आम’ कहा जाने लगा।
न जाने कहां से उड़ते-उड़ते ये खबर वहां के तत्कालीन राजा तक पहुंच गई। राजा के मन में भी उस आम को चखने की इच्छा जगी। उन्होंने आम मंगवाया और जैसे ही चखा, उसका मीठा, रसीला स्वाद दिल में उतर गया।
राजा को यह आम इतना पसंद आया कि उन्होंने इस किस्म को औपचारिक रूप से "लंगड़ा आम" नाम दे दिया। फिर क्या था, राजा ने इस आम के कई पौधे लगवाए और इसका पूरे क्षेत्र में विस्तार कराया।
आज लंगड़ा आम की डिमांड सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुबई, लंदन और कनाडा तक है। हर साल जून-जुलाई में सहारनपुर जैसे इलाकों से हज़ारों टन लंगड़ा आम देश-विदेश भेजा जाता है।
भारत मे आम की सैकड़ों वेराइटी पाई जाती है। लेकिन कुछ स्पेशल जैसे लंगड़ा, चौसा, दशहरी हाफुस जैसे आम ही भारतीयों दिल पे राज करते है।